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रविवार, 31 अक्टूबर 2021

Diwali 2021 date: कब है दिवाली का पावन त्यौहार? जाने तिथि, मुहूर्त, महत्व / Essay On Diwali

 

Diwali 2021 date: कब है दिवाली का पावन त्यौहार? जाने तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व / दिपावली पर निबंध

      हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल दिवाली का पावन त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस वर्ष 04 नवंबर, गुरुवार 2021 को दिवाली का त्यौहार मनाया जाएगा। 

दिवाली का त्यौहार हिंदू धर्म में महापर्व माना जाता है। दिवाली से पहले धनतेरस तथा नरक चतुर्दशी (जिसे छोटी दीवाली भी कहते हैं) का त्यौहार आता है तथा बाद में गोवर्धन पूजा, विश्वकर्मा पूजा और भाई दूज के त्योहार मनाए जाते हैं। इसमें से गोवर्धन पूजा और विश्वकर्मा पूजा एक ही दिन पड़ते हैं। 

                                           

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Table Of Contents:-
  1.  दशहरे के कितने दिन बाद दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है?

  2.  दिवाली पर कौन सा खास योग बन रहा है?

  3.  प्रश्नोत्तरी

  4. दीपावली पर किस विधि से करें लक्ष्मी गणेश का पूजन?

  5. दीपावली को मनाए जाने की कथा, महत्व 

  6. रावण के पास थी इतने करोड़ की सेना

  7. इतने दिन चला था रामायण का युद्ध

  8. जब लक्ष्मी जी के मन को भाए सरसों के फूल व गन्ने के खेत

  9.  देवी लक्ष्मी का किसान को वरदान

  10. मेरी कलम से

     

     

 दशहरे के कितने दिन बाद दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है?

        दशहरे के ठीक 20 दिन बाद दिवाली का त्यौहार आता है। दिवाली के कई दिन पहले से घरों में साफ-सफाई, रंगाई- पुताई शुरू हो जाती है। नए-नए कपड़ों की खरीदारी होती है। रिश्तेदारों में मिठाईयों का आदान-प्रदान होता है। शाम होते ही मुहूर्त के अनुसार पूजा की जाती है। इस दिन मुख्य रूप से लक्ष्मी-गणेश की पूजा का विधान है। धनधान्य की प्रार्थना की जाती है। रात में मिट्टी के दिये, मोमबत्तियों और रंग-बिरंगी रोशनी वाली झालरों से घरों को सजाया जाता है। 

दुकानों के बही खाते बदले जाते हैं क्योंकि कुछ स्थानों पर दिवाली के दिन से व्यवसायिक नया वर्ष शुरू माना जाता है। 


दिवाली पर कौन सा खास योग बन रहा है? 

    इस साल 2021 में दिवाली पर ग्रहों के खास योग बन रहे हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन तुला राशि पर चतुर्दशी योग बन रहा है। इस दिन तुला राशि में सूर्य, बुध, मंगल और चंद्रमा मौजूद रहेंगे। 


प्रश्नोत्तरी :

* कार्तिक की अमावस्या कब है? 

तिथि  04 नवंबर 2021 को प्रातः 6:08 मिनट से शुरू हो जाएगी तथा अमावस्या तिथि की समाप्ति 05 नवंबर 2021 को प्रातः 2:44 तक रहेगी

* दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त समय 

शाम 6:10 मिनट से रात्रि 8:20 मिनट तक रहेगा

* कब है दीपावली का शुभ मुहूर्त

 दीपावली 4 नवंबर 2021 को दिन गुरुवार वह है 

* लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त कब है 

शाम 6:10 से वजह से रात्रि 8:06 तक

पूजा की अवधि 

एक घंटा 54 मिनट 

* प्रदोष काल मुहूर्त

 शाम 5:34 बजे से रात्रि 8:10 बजे तक

अमावस्या तिथि प्रारंभ 

4 नवंबर 2021 प्रातः 6:03 बजे से 

* अमावस्या तिथि समाप्त 

5 नवंबर 2021 2:44 बजे


दीपावली पर किस विधि से करें लक्ष्मी गणेश का पूजन? 

                           
        
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       सबसे पहले घर की साफ सफाई कर पूजा के स्थान पर गंगाजल छिड़कें। लक्ष्मी जी तथा गणेश जी की प्रतिमा पर भी गंगाजल छिड़कें। इसके पश्चात पूजा की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर मुट्ठी भर अनाज रखें। उसके ऊपर कलश में जल भरकर रखें इस कलश में एक सुपारी, गेंदे का फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने रखें कलश पर स्वास्तिक बनाए। अब कलश पर आम के 5 पत्तों (पल्लव) को गोलाकार रखकर ऊपर से नारियल रखें। पान सुपारी मूर्ति के आगे रखकर लक्ष्मी-गणेश जी का आवाहन (निमंत्रित) करें खील-बताशे, मिठाई, फल आदि को प्रसाद रूप में रखें। तुलसी दल से प्रसाद को शुद्ध करें। 

   अब चौकी के पास अपने व्यापार से संबंधित पुस्तकें रखें। मां लक्ष्मी और गणपति महाराज की प्रतिमा को तिलक लगाएं, अक्षत (चावल) लगाएं। मंत्रों का उच्चारण कर पूजा करें। लक्ष्मी गणेश की दीपावली पूजन कथा का पाठ करें। अंत में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की आरती कर मनोकामना करें। 


दीपावली को मनाए जाने की कथा, महत्व

  धार्मिक मान्यता है कि दिवाली का यह त्योहार रामायण के काल से मनाया जा रहा है। कहा जाता है कि जब भगवान श्री राम लंका को जीतने के बाद अयोध्या नगरी वापस पहुंचे तो अयोध्या के वासियों ने अपने राजा के वापस आने की खुशी में उनके स्वागत के में पूरी अयोध्या नगरी में घी के दिए जलाए थे। 

 एक अन्य मान्यता यह भी है कि इसी दिन माता लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी। 


रावण के पास थी इतने करोड़ की सेना

                          
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                All pictures taken from Google

प्राचीन पुस्तकों में वर्णित है कि रावण की सेना की संख्या कुल 72 करोड़ थी परंतु फिर भी भगवान श्रीराम ने केवल वानर सेना के साथ रावण का सामना किया। युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण जी घायल हुए तब रावण ने युद्ध के नियमों की मर्यादा को मानते हुए उन पर हमला नहीं किया था। 

    रावण की सेना में उसके साथ पुत्र तथा कई भाई सेना का नेतृत्व कर रहे थे। रावण के कहने पर ही रावण के भाई अहिरावण और महिरावण ने श्री राम तथा लक्ष्मण का छल से अपहरण करने का प्रयास किया था। रावण स्वयं भी दशानन था और उसकी नाभि में अमृत होने के कारण ही वह लगभग अमर था। 


इतने दिन चला था रामायण का युद्ध

रामायण का युद्ध आश्विन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को शुरू हुआ था और दशहरे के दिन यानी दशमी को रावण वध के साथ समाप्त हुआ था। इस तरह रामायण का युद्ध पूरे 8 दिनों तक चला था। 

जब लक्ष्मी जी के मन को भाए सरसों के फूल व गन्ने के खेत

     हिंदी मान्यताओं में एक यह कथा भी प्रचलित है कि समुद्र मंथन के बाद धनसपदा की देवी लक्ष्मी जी और भगवान विष्णु वैकुंठ को चले गए। कुछ समय पश्चात बाद भगवान विष्णु पृथ्वी भ्रमण का विचार कर लक्ष्मी जी के साथ पृथ्वी पर आए। भ्रमण के दौरान भगवान विष्णु ने दक्षिण दिशा में भ्रमण की इच्छा की और लक्ष्मी जी को एक जगह रुकने को कहा। विष्णु ने लक्ष्मी जी को उस जगह से कहीं और ना जाने और स्वयं के शीघ्र वापस आश्वासन दिया।                 

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Picture credit: Google

       लक्ष्मी जी कुछ समय विष्णु जी का इंतजार कर जब पृथ्वी पर सरसों के लहलहाते फसलों को देखा तो स्वयं को रोक ना पाई और एक सरसों के खेत में चली गई। उन्होंने सरसों के फूलों से अपना श्रृंगार किया। कुछ आगे चलने पर उन्होंने गन्ने के खेतों को देखा तो एक गन्ने को चखा। उन्हें गन्ना स्वादिष्ट लगा इसलिए उन्होंने उस गन्ने को खा लिया। 
     जब विष्णु जी वापस लौटे तो निश्चित जगह पर लक्ष्मी जी को ना पाकर ढूंढने लगे। उन्हें लक्ष्मी जी किसान के खेतों में भ्रमण करते हुए मिली। भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी जी से नाराज हो गए और कहा कि आपने किसान की फसल से चोरी करके गन्ने को खाया है इसलिए आपको इसका दंड मिलेगा। आपको दंड स्वरूप कुछ समय के लिए इस किसान के घर पर ही रहना होगा। दंड की समय अवधि समाप्त होने पर मैं आकर आपको ले जाऊंगा और यह कहकर विष्णु जी अकेले ही बैकुंठ को प्रस्थान कर गए। 

देवी लक्ष्मी का किसान को वरदान                                             

दंड के समय के समाप्त होने पर भगवान विष्णु वापस लौटे और देवी लक्ष्मी को चलने के लिए कहा। देवी लक्ष्मी जी को जाता देख किसान व्याकुल हो गया, व्याकुल हो विलाप करने लगा। किसान के इस विलाप से दुखी देवी लक्ष्मी ने उसे यह आश्वासन दिया कि वह किसान के घर में एक कलश के रूप  में मौजूद रहेंगी। किसान को उस कलश की पूजा करनी होगी। देवी ने किसान को वरदान दिया कि वह प्रत्येक वर्ष इसी दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को उसके घर सशरीर  पधारेंगी। किसान यह वरदान पाकर अत्यंत प्रसन्न हुआ और देवी लक्ष्मी विष्णु जी के साथ बैकुंठ को चली गई। 

अगले वर्ष कार्तिक अमावस्या आने पर किसान ने देवी लक्ष्मी के आगमन की खुशी में धरती को अच्छे से लीपा, दीपों से घर को रोशन किया। कहा जाता है कि तभी से दीपावली मनाए जाने की शुरुआत हुई है। इसके बाद प्रतिवर्ष लोग कार्तिक अमावस्या के दिन देवी लक्ष्मी जी को अपने घर बुलाते हैं और उनके स्वागत में अपने घर को दीप से सजाते हैं। 


मेरी कलम से  ✍️

मेरा बचपन 90 के दशक का है। 90 के दशक में हर त्यौहारों का एक अपना ही रंग हुआ करता था। दिलों में प्रेम, सद्भावना और मेलजोल था। मोहल्ले के हर बड़े चाचा और हर छोटा भाई हुआ करता था। दिवाली (diwali) की रौनक का तो कहना ही क्या किसके पटाखे ज्यादा आवाज करने वाले हैं, किसके पापा बहुत दूर से नई-नई तरह के पटाखे लाए हैं इसकी वाहवाही पाने की होड़ लगी रहती थी। 

दिवाली के समय नए कपड़ों का तो कहना ही क्या एक ही थान से पूरे घर के कपड़े तैयार हो जाते थे। भाई पापा सभी के शर्ट- पैंट एक सी होती थी। हम बहनों के सूट सलवार भी एक ही थान के हुआ करते थे। फूल पत्तियों के डिजाइन वाले। 

आज उस दौर को सोचती हूँ तो हंसी भी आती है रोमांच भी होता है। हंसी उन भोली हरकतों पर और रोमांच त्योहारों के प्रति उस उत्साह के लिए। 

कितनी मीठी यादें हैं..... वो समय ही कुछ और था वो वाली दिवाली.... हां वो वाली दिवाली!!! 


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