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शनिवार, 24 जुलाई 2021

अभिमान और स्वाभिमान | Ego Vs Self Respect (Part-2)

अभिमान और स्वाभिमान | Ego Vs Self Respect (Part-2) | Story In Hindi


         हैलो दोस्तों! कैसे हैं आप सभी, आशा करती हूँ आप सभी अपने अपने घरों में खुश और स्वस्थ होंगे। जैसा कि मैंने अपने पिछले अंक में आप सभी से वादा किया था कि मैं अहंकार से जुड़ी एक कहानी आप सभी के लिए लेकर उपस्थित होऊंगी तो आज का यह अंक मुख्यतः 'स्वाभिमान और अभिमान' की कहानी (story in hindi short) के बारे में है... तो चलिये सुनते हैं आज की कहानी... 

TABLE OF CONTENTS:

  1. मूंछ नहीं तो कुछ नहीं- कहानी अंहकार की! | Moral Story
  2. स्वाभिमान का रंग  Colour of Self-Respect | Motivational Story | Real Story
  3. मेरे  विचार | उपसंहार | Epilogue


मूंछ नहीं तो कुछ नहीं- कहानी अंहकार की! | Moral Story


                                   man-with-long-mustache
                                                                      

           एक गांव था प्रतापपुर बहुत ही खुशहाल और खुशमिजाज लोग वहां पर रहा करते थे। उस गांव में एक व्यक्ति था, जिसका नाम था 'छगनमल मूछों वाले' दरअसल उसका नाम तो छगन मल था परंतु उसकी हमेशा से यह कामना रही थी कि किसी भी तरह उसका नाम पूरे गांव में प्रसिद्ध हो जाए। पर उसके अंदर ऐसा कोई गुण ना था जिस कारण से वह प्रसिद्ध हो सके। ना तो वह पढ़ने में बहुत अच्छा था, ना ही उसने कुछ विशेष कौशल अर्जित किया था अपने जीवन में। और तो और इस गांव के अन्य व्यक्तियों के स्वभाव के विपरीत उसका स्वभाव था। उसमें एक मिलनसार व्यक्ति होने की छाया भी न थी।थी।

Chaganmal-trimming-his-mustache-in-front-of-mirror

     एक दिन दर्पण में देखते समय उसके मन में विचार आया कि मेरी मूंछें कितनी सुंदर है। उस दिन से वह अपनी मूंछों का विशेष ख्याल रखने लगा। उसने मूछों को छोटा नहीं किया। धीरे-धीरे उसकी मूछों का साइज बढ़ता गया, वो काफी लंबी हो गई। अब लोग उसे छगन मल मूछों वाले कहकर पुकारने लगे, तो इस तरह उसका नाम छगनमल मूछों वाले पड़ गया। 

 इस बात को 10 वर्ष बीत गए थे। उसे इस नाम की, इस उपाधि की आदत सी हो गई थी। समय के साथ यह आदत अब उसके लिए अहम का प्रश्न बन गई थी। उसके स्वभाव में एक अड़ियलपन, गुस्सा और इर्ष्या का भाव आ गया था। गांव में किसी भी व्यक्ति की उससे बड़ी मूंछ रखने की हिम्मत नहीं थी। अन्यथा वह लड़ जाता था और मरने मारने तक पर उतारू हो जाता था। उसके इस स्वभाव के कारण गांव में उसके डर से कोई भी अपनी मूंछें बड़ी नहीं रखता था। 


                                              another-man-with-long-mustache-name-maganmal


एक दिन कुछ यूँ हुआ.... दूसरे गांव से एक व्यक्ति (मगनमल) उस गांव में नया-नया आया था। रास्ते में एक गांव वाले ने उसे रोक कर कहा कि वह गांव के भीतर ना जाए। मगनमल भी कुछ अड़ियल ही था। वह गांव के भीतर जाने पर अड़ गया। ग्रामीण ने उसे बहुत समझाया, पर जब वह नहीं माना तो उस गांव वाले ने मगनमल को हिदायत देते हुए कहा कि यदि तुम गांव में जा रहे हो तो पहले अपनी मूंछों को छोटा करवा लो। मगनमल इस पर भी ना माना तो गांव वाले ने उसे आगाह किया कि देखो तुम उस बनिए टोले में, कुंए वाली गली में, छगनमल के घर के सामने से मत जाना नहीं तो गजब हो जाएगा। अब तुम्हारे प्राण तुम्हारे हाथों में है। कह कर वह चला गया। अब वह  मगनमल अपनी उत्सुकता के कारण उसी मोहल्ले में, उसी गली में, उसी घर के सामने से तीन बार अपनी मूछों को ताव देते हुए गुजरा। 

 एक बार छगनमल की नजर उस पर पड़ गई। बस फिर क्या था, उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। तुरंत भीतर गया और लपक कर दो तलवारे साथ ले आया। एक उसने परदेसी को दी एक स्वयं हाथ में लेकर ललकारते हुए बोला- या तो आज तू नहीं या आज मैं नहीं। अब मगनमल के तो हवाइयां उड़ने लगीं। छगनमल के क्रोध का ताप देखकर वह भाॅंप गया कि यह जरूर कोई सनकी है। उसने अपने मन को शांत करते हुए कहा कि देखो भाई, या तो आज तुम्हारी पत्नी विधवा होगी, बच्चे अनाथ होंगे या फिर मेरी पत्नी विधवा होगी और मेरे बच्चे अनाथ होंगे। तो हमारे बाद उन्हें कौन देखने वाला है इससे अच्छा तो यह होगा कि पहले हम उन्हें समाप्त कर दें। ताकि बाद में उन्हें कोई पीड़ा ना हो। छगनमल को यह बात जॅंच गई। मगन मल ने कहा कि मुझे 1 घंटे का समय दो मैं अपने गांव जाकर फटाफट उन सभी को मृत्यु के घाट उतार कर फिर तुम से लड़ने आऊंगा। तब तक तुम भी ऐसा ही करो। एक घंटे बाद मिलते हैं छगन मल ने भी हामी भरी। 


                                      chaganmal-and-maganmal-sword-fighting


        एक घंटे बाद अपनी पत्नी और बच्चों की जीवन लीला समाप्त कर छगनमल वापस लौटा। परंतु उसका इंतजार बढ़ता ही जा रहा था। वह परदेसी मगनमल नहीं आया। 

कुछ दिनों के बाद जब वह परदेसी उस गांव में दोबारा आया तो छगनमल उसे देखते ही पहचान गया। दौड़ कर उसके पास आया। पूछने लगा कि तुम उस दिन वापस क्यों नहीं आए? मैंने तुम्हारा कितना इंतजार किया, आओ आज फैसला करते है। 

                                                 chaganmal-regretting


        मगनमल का रूप कुछ बदल चुका था। मुस्कुराते हुए बोला- मैंने सोचा भाई, जिस  मूंछ के कारण मुझे अपनी पत्नी, अपने बच्चे, सभी प्रिय जनों से दूर होना पड़े तो क्यों ना इस मूंछ को ही थोड़ा सा छोटा करवा दिया जाए। इसीलिए मैं नहीं आया। अब तो छगनमल सिर पर हाथ रखकर बैठ गया। उसे यह बात समझ आ गई, वह पश्चाताप में जलने लगा कि उसने यह क्या कर डाला। अपनी मूछों के लिए उसने अपने ही पूरे परिवार को स्वाहा कर दिया। 

   तो दोस्तों यह थी एक छोटी सी कहानी जिससे हमें यह सीख मिलती है कि झूठा अंहकार, क्रोध, दंभ या लालच यह सभी अंत में हमारा ही नुकसान करते हैं। परंतु जब तक व्यक्ति की आंखें खुलती है, तब तक उसका बहुत बड़ा नुकसान हो चुका होता है। इसलिए अपने स्वभाव में समता रखनी चाहिए। 

यह कहानी मैंने अपनी नानी से बचपन में सुनी थी। तब से मन में एक गांठ पड़ गई कि कभी अपनी क्षमताओं, उपलब्धियों तथा गुणों के लिए मन में तनिक भी अहम का भाव नहीं लाना चाहिए।

दोस्तों अगली कहानी स्वाभिमान की है- 'स्वाभिमान का रंग'


स्वाभिमान का रंग  Colour of Self-Respect | Motivational Story | Real Story


                       mr.-and-mrs.-irani


         यह कोई कहानी नहीं बल्कि एक आंखों देखा हुआ वाक्या है। हमारे पड़ोस में एक आंटी रहा करती थी मिसिज ईरानी। वह बहुत बुजुर्ग थी, करीब 70 वर्ष उनकी आयु रही होगी। वह अकेले घर का सभी काम करती थी। कोई मेड भी नहीं लगा रखी थी। अंकल-आंटी दोनों मिलकर रहते थे और  खाली समय में कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दिया करते थे। उनके बच्चे विदेश में रहते थे। कभी किसी रिश्तेदार भी उनके यहाँ नहीं आते-जाते नहीं देखा था। कई सालों से मैं उनकी यही दिनचर्या देख रही थी। 

एक दिन कुछ सोसायटी के लोगों ने मिलकर यह फैसला किया कि क्यों ना अंकल- आंटी की मदद की जाए। वे बेहद अकेले है और कोई फाइनेंशियल सपोर्ट भी नहीं है उनके पास।  सोसाइटी के सभी लोगों ने मिलकर चंदा इकट्ठा किया और उनके घर उनसे मिलने गए। वह चंदा उनको दिया तथा साथ में एक पेशकश भी रखी कि स्कूल के बाद कुछ बच्चे अंकल-आंटी के पास आ जाया करेंगे, यदि कोई छोटा-मोटा काम हो तो वे हम बच्चों से कह सकते हैं।  अंकल और आंटी ने दोनों हाथ जोड़े और  यह कहते हुए मदद लेना अस्वीकार कर दिया कि उन्हें इसकी जरूरत नहीं है। वे बोले- हम अब तक जिस तरह से अपना जीवन-यापन करते आए हैं, उसी तरह आगे भी कर लेंगे। हमारे बारे में इतना सोचने के लिए आप सभी का थैंक यू। 

 सभी वापस आ गए। मैं मन में सोचने  लगी की कितनी तकलीफ होती होगी, जब वे सोचते होंगे उनके बच्चे उनके पास नहीं.... ना तो कोई रिश्तेदार ही है। 


                                          seventy-eight-years-old-mrs.-irani

    all pictures credit pixabay & canva


         लगभग 5 वर्ष बाद अंकल की भी मृत्यु हो गई। आंटी अकेली रह गई। कमर भी कुछ झुक गई थी। पर फिर भी रास्ते में आते-जाते समय उन्हें कभी झाड़ू लगाते, कभी बर्तन धोते और कभी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते देखा करती थी।  पर उन्होंने कभी किसी से कोई मदद नहीं ली। इसके 3 साल बाद पता चला कि अब वह आंटी ( मिसिज ईरानी) भी अब इस दुनियाँ को अलविदा कह चली गयीं। उनकी हिम्मत, ज़ज्बे और जीने के जु़नून को दिल से सलाम!🙏

तो यह थी कहानी स्वाभिमान की।



📝मेरे  विचार | उपसंहार | Epilogue

      जिंदगी प्रत्येक क्षण परिस्थितियों के माध्यम से हमारी परीक्षा लेती रहती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस परिस्थिति को किस नजरिए से देखते हैं और उसका हल निकालने के लिए किस रास्ते को चुनते है। हम अपने विवेक से सही गलत का बोध करने की क्षमता द्वारा विषम परिस्थितियों से भी निकल सकते हैं (जैसा मगनमल ने किया)। 
अहंकार एक सर्प के विष की भांति है। जो हमारे शरीर को स्वयं ही अंदर ही अंदर खोखला करता रहता है। हम समाज में अकेले रह जाते हैं, अलग-थलग पड़ जाते हैं। वहीं दूसरी ओर स्वाभिमान हमें कभी किसी के आगे झुकने नहीं देता और दूसरों के सीमाओं में प्रवेश ना करते हुए, हमें अपने अस्तित्व की रक्षा करने का स्वतंत्र्य प्रदान करता है। 
अभिमानी की आँखे तब खुलती हैं जब काफी नुकसान हो चुका होता है।  स्वाभिमानी सबको साथ लेकर चलते हुए भी अपने मान को बचाये रखता है। 
 हम जिस प्रकार का बर्ताव दूसरों से अपने प्रति चाहते हैं। उसी प्रकार का बर्ताव हमें भी उनके साथ करना चाहिए। 
बचपन में नानी कहती थी ं- "अपनी इज्ज़त , अपने हाथ "

 ये थी मेरे द्वारा लिखी story writing (moral story short)। इसी के साथ मैं अपनी लेखनी को विराम देती हूँ। मिलती हूं नए अंक में नये विचार के साथ तब तक के लिए नमस्कार... 🙏



आप पढ़ रहे थे कहानी स्वाभिमान और अभिमान की. इन दोनों कहानियों में से आपको कौन-सी कहानी (story) अधिक पसंद आई  और क्यों?...  कमेंट करके बताइएगा.


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