रिटायर- भाग 1 (Retire-Part-1) New Story In Hindi
आज कई दिनों की झमाझम बारिश के बाद कुछ हल्की धूप निकली थी. चिड़ियों की चहचहाहट से आकाश
वातावरण गुंजायमान हो रहा था. आकाश से काले बादल जा चुके थे. चारों ओर सब कुछ नया-नया सा लग रहा था.
तभी सामने के मकान पर नजर पड़ी, चार लोग एक बोर्ड टांग रहे थे. उस बोर्ड को पढ़ने की कोशिश की तो लिखा
था- "राज-लेखा वृद्धाश्रम".
नए पड़ोसी का आगमन |New Neighbor Arrival
बोर्ड पढ़कर मन कुछ भारी सा हो आया आंखों के सामने पुरानी यादें चलचित्र की भांति घूमने लगीं. बात कुछ
पुरानी होगी... मैं 10 साल की रही होंगी तब एक नवविवाहित जोड़े ने सामने वाला घर खरीदा था. मैंने मम्मी से पूछा
कि सामने वाले घर में अब कौन आए है?.. तो मम्मी ने बताया कि पता नहीं कोई नया जोड़ा लगता है. अब एक-दो
दिन में जान-पहचान हो जाएगी, तब पता चल जाएगा.
एक दिन जब मैं बाहर गली में दोस्तों के साथ खेल रही थी... तो बॉल उस सामने वाले घर में चली गई.
किसी साथी की हिम्मत ना होती थी कि उस घर में जाकर बॉल को ले आए क्योंकि कोई भी उस नई फैमिली से
परिचित नहीं था... तो सभी ने मुझे आगे कर दिया, यह सोच कर कि ग्रुप में अकेली लड़की होने के कारण इसे डांट
नहीं पड़ेगी. डरते-डरते मैंने डोर बेल बजाई. एक नजर दरवाजे पर थी... तो दूसरी नजर दोस्तों पर. ना जाने क्या
होने वाला था... सोचकर हाथ-पांव फूलें जाते थे. कुछ ही पलों के इंतजार में दरवाजा खुल गया, सामने एक युवती
खड़ी थी. मुस्कुराकर मुझसे पूछा... क्या हुआ बेटा, बैल क्यों बजाई, किससे काम है... मैं बस उनका चेहरा ही
देखते जाती थी, प्रश्नों पर मेरा ध्यान ही नहीं गया. सुंदर नयन-नक्ष, काले लंबे बालों, गेहुंआ रंग जैसे स्वर्ण की काया,
उस पर धानी रंग की साड़ी किसी देवी के समान प्रतीत होती थी... कुछ हड़बड़ा कर मैंने कहा वो..वो..आंटी हम
दोस्त गली में खेल रहे थे तो बोल आपकी बालकनी में चली गई है. प्लीज आप उसे दे दीजिए आगे से ऐसा नहीं
होगा...सॉरी आंटी.
आंटी- (वह खिलखिला कर हंस पड़ी) अरे! कोई बात नहीं बेटा अभी लेकर आती हूं. आओ, अंदर आओ... कहां
पर आई है बॉल?.
मैं- जी.... वो.... आपकी बालकनी में...
आंटी- ओहो! मैं अभी लाती हूं. तुम यहां बैठो.
कहकर वह बॉल लेने चली गई मैं उनके कमरे को देखने लगी. सब कुछ करीने से रखा हुआ था. टेबल पर
एक फोटो थी, शादी की लगती थी. एक फ्लावर वास था, जिसमें ताजे फूल रखे हुए थे. कमरे में एक प्यारी-सी भीनी
खुशबू आ रही थी. इतने में वह बाल लेकर वापस आ गई. ओह! तो ये खुशबू उनके बालों में लगे मोगरे के गजरे की
है.
आंटी- (बॉल देते हुए)तुम्हारा नाम क्या है?
मैं- जी... अंजली
आंटी- बहुत प्यारा नाम है, मेरा नाम लेखा है. तुम कभी-कभी यहां मुझसे मिलने आ सकती हो.
मुझे दो बिस्किट दिए और मैंने थैंक यू कह कर बॉल ले ली. जब मैं बाहर आई सभी दोस्तों की निगाहें मुझ
पर थी टिकी थी. प्रश्न नेत्रों से वह मुझे घूर रहे थे और मैं एक विजयी मुस्कान के साथ उनके हाथ में बॉल देते हुए
बोली... ये आंटी बहुत क्यूट है.
इस तरह कभी-कभी उनके घर मेरा आना-जाना होने लगा. वह मुझे बहुत प्यार करती थी.
विवाह के बंधन की लटकती तलवार | Hanging Sword of Marriage
मैं दसवीं कक्षा में थी. लेखा आंटी ने मुझसे कहा कि अगर किसी सब्जेक्ट में दिक्कत हो तो मैं उनके पास
आकर समझ सकती हूं. कभी-कभी मैं उनके पास अपने मैथ के सम लेकर पहुँच जाती थी. उनके बेटे विहान और
आयुष तब 5 और 3 साल के थे. बहुत चंचल स्वभाव था उनका. मुझे उनके साथ खेलने में बहुत मजा आता था
उनकी तोतली जुबान से दीदी-दीदी सुनने में एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती थी.
अब ग्रेजुएशन में पढ़ाई से कुछ ज्यादा समय ना मिलता था. कभी-कभी ही लेखा आंटी के घर जाना हो
पाता था. वह भी कुछ खास अवसरों या त्योहारों पर.
पढ़ाई खत्म होते ही शादी का प्रेशर सर पर आ गया. हर बात घूम-फिर कर घर में मेरी शादी पर आ जाती
थी. मैं एक-दो साल जॉब करना चाहती ही. पर मम्मी वह तो किसी हाल में राजी ही नहीं होती थी. मोर्चा खोले बैठीं
थी 'अंजली की शादी जल्दी करो'.
दिवाली के अवसर पर लेखा आंटी के घर मिठाई देने जाना हुआ तो उन्होंने हालचाल पूछा. मैंने अपनी
परेशानी बता दी. उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि इस बारे में वे मम्मी से बात करेंगी. इसी बीच विहान और आयुष
के बारे में मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि पढ़ाई अभी टेंथ, ट्वेल्थ की चल रही है तो दोनों का फोकस उसी पर है.
मैंने उनके रिजल्ट की शुभकामनाएं देखकर आंटी से विदा ली.
आंटी के समझाने पर मम्मी एक-दो साल रुकने को तैयार तो हो गई, पर यह सब ज्यादा दिन तक नहीं
चल सका. यह ब्रह्मास्त्र भी मम्मी की जिद के बांध को ज्यादा दिन तक रोककर नहीं रख सका. मेरी आजादी चंद
दिनों की थी. इस अल्हड़, उन्मुक्त पंछी की आज़ादी की डोर को जल्दी ही एक बंधन में बांध दिया गया.... और
बहुत-सी नसीहतों, शुभकामनाओं के साथ मायके से मैं विदा हो गई.
ईश्वर की कृपा से ससुराल बहुत अच्छा मिला था. मेरी अपनी एक स्पेस, पहचान थी घर में. अपने स्वभाव
से जल्दी ही सबका मन जीत लिया मैंने. ससुर जी, सासू मां, देवरजी और नन्द सभी बहुत अच्छे थे... पॉजिटिव
माहौल था.
मम्मी के यहां जब भी आती तो लेखा आंटी के यहां मिलने जरूर जाती थी और अपने ससुराल के किस्से
कहानियों की बकबक से उनको खूब हंसाती. वो मेरे लिए खुश थी. उन्होंने बताया कि विहान भी अब जॉब करने
लगा है.. विहान आईटी सेक्टर में है और आयुष ने एक कंसल्टेंसी फॉर्म ज्वाइन कर ली है. एक बेंगलुरु में है तो एक
कोटा में.
अंकल-आंटी एक बार फिर से इतने बड़े घर में अकेले हो गए. कॉल पर बात होती है बस इसी से खुद
को तसल्ली देते कि बच्चों का करियर सेट हो गया अब दोनों की शादी के लिए सोचना हैं.
विचारों की हलचल | Movement of Thoughts
इसके बाद मेरा आंटी से मिलना लंबे समय के बाद ही हो पाया. इस बार जब मैं मिली तो वह काफी उदास
लग रही थी. लगता था मानो देह में कोई जान ना हो, सेहत कुछ बिगड़ती-सी मालूम होती थी. पूछने पर बताया की
विहान यूएस में सेटल है और आयुष कोटा में. विहान का कुछ दिन पहले कॉल आया था जिसमें उसने बताया कि
उसने वहां शादी कर ली है.... पर आगे यह भी कहा... कि आप लोग चिंता ना करें लड़की भारतीय है और मैं जल्दी
ही उसे आपसे मिलवाने लाऊंगा. तब से राजन भी कुछ उदास से हो गए हैं. उन्हें बहुत उम्मीदें थी विहान से... वे
सोचते थे विहान सिर्फ कैरियर बनाने विदेश गया है. जाने से पहले उसने कहा भी था कि वह वापिस इंडिया आकर
ही सेटल होगा और यहीं अपनी लाइफ बनाएगा. पर अब सब कुछ टूटा-सा लगता है.मैंने आंटी को सांत्वना दी और
मन में कई विचारों की हलचल लिए वापस आ गई.
बहुत से प्रश्न थे मन में
* क्या विहान वापस आएगा?...
* क्या विहान भारत में फैमिली के साथ सेटल होगा?...
* क्या आगे चलकर विहान का सहारा अंकल आंटी को मिल पाएगा?...
* क्या आयुष भी अपनी एक अलग दुनियां तो नहीं बसा लेगा?...
* क्या अंकल-आंटी का बुढ़ापा बच्चों के साथ होगा?...जिसके लिए उन्होंने सारी जिंदगी तपस्या की....
* क्या वे दोनों इस खबर से संभल पाएंगे?...
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको अगले अंक में मिलेंगे तब तक के लिए प्रतीक्षा कीजिए..
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