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शनिवार, 29 मई 2021

तुम ऐसे ना थे! - कहानी | In Hindi Story


तुम ऐसे ना थे! - कहानी | Hindi Story


हैलो दोस्तों, मैं आपकी दोस्त  पुष्प की दुनियां। आज मैं आपसे नारी के विषय में एक और विचार प्रस्तुत करने उपस्थित हुई हूं । आज का यह विचार मेरी एक स्वरचित आरती की कहानी/ Hindi Story of Aarti (motivational hindi story) के रूप में है....


कथा बिंदु | Highlights:-



कहानी आरती की


     "अमित" ऑफिस चले गए घर का सब काम भी खत्म हो गया था। आरती ने घड़ी की तरफ नजर दौड़ाई दोपहर के 2:00 बजने वाले थे, ओह...बच्चों के स्कूल से आने का टाइम होने वाला है। स्टेंड पर बच्चों को लेने जाने के लिए आरती ने दरवाजा लॉक किया और बच्चों को लेने चली ये गई।.... स्कूल बस जल्दी ही आ गई ज़्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा।....  बच्चे मम्मा को देखकर खुश हुए और बस शुरू हो गई दोनों की दिनभर की चटर-पटर...  आज क्या-क्या हुआ की रिपोर्टिंग.... आज क्लास में ये हुआ.... आज क्लास में वो हुआ... आज मैम ने इस बात की तारीफ की .... आज मैम ने उस बात के लिए डांटा.... बस यही सब पूरे रास्ते चलता रहा....। इन्हीं सब में घर भी आ गया। 

 दरवाजा खोलकर सब अंदर आए, आरती बच्चों  को हाथ-मुंह धो कर कपड़े चेंज करने के लिए कह कर रसोई में चली गई... बच्चों को लंच करा आरती ने भी लंच किया और सब काम से फारिक़ हो सोफे पर बैठी तो सामने रखें न्यूज़पेपर के पन्ने पलटने पड़ी लगी। वही हमेशा की खबरें थी, कुछ खास नया नहीं था।

 आज सुबह से ही पता नहीं क्यों आरती का मन कुछ उचाट था.... सोचा चाय पी लेती हूं, मन कुछ रिफ्रेश हो जाएगा। चाय की चुस्की लेते हुए कई विचारों के बादलों ने उसे घेर लिया....


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10 साल हो गए हैं उसकी शादी को... लगता है... मानो कल ही की तो बात है जब वह इस घर में दुल्हन बन कर आई थी। कितने सपने थे उसके.... अपने घर को उसे उन सपनों-सा सजाना था। सब कुछ तो किया उसने...? फिर भी ये खालीपन सा क्यों है...? तभी वह सोचते-सोचते यादों के झरोखे में झांकने लगी... शुरू-शुरू में कितना अच्छा था सब...!

   अमित उसकी हर बात को तवज्जो दिया करते थे। दोनों मिलजुल कर खुशी खुशी-खुशी रह रहे थे। फिर बड़ी बेटी पिया का आगमन हुआ दोनों बहुत खुश थे। उसकी परवरिश में समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला।

 उसके 4 साल बाद प्रथम का जन्म हुआ। गृहस्थी अच्छी चल रही थी....  


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फिर.... फिर पता नहीं क्या हुआ? अमित छोटी-छोटी बातों पर आरती को टोकने लगा। उसके किए गए हर काम में उसे कमियां दिखलाई देने लगी.... और फिर एक दिन कहते-कहते मन की बात ज़बान पर आ ही गई.... की तुम्हारी हैसियत क्या है...??? 

आरती सुनकर सकते में आ गई। इस बात की उसे सपने में भी आशा ना थी... कि अमित उसे एक दिन ऐसा भी कह सकते है... उस दिन वह बहुत रोई थी... रोते-रोते उसकी आंखें सूज गई थी....

 हालांकि बाद में अमित ने सॉरी बोला और आरती को मना लिया था।  पर यह सिलसिला रुका नहीं हर छोटी-छोटी बातों पर आरती को रोकना-टोकना, कड़वा बोल देना.... फिर बाद में सॉरी कहना... अब तो जैसे रोज़ ही की बात हो गई थी.... 


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आरती ने अमित से कहा- जब हमारी शादी हुई थी, तब यह सभी बातें क्लियर हो गई थी। मेरा कितना मन था जॉब करने का... पर तुमने यह कहकर मना कर दिया की जरूरत नहीं है। मैं कमाऊंगा, तुम घर संभालना। मैंने भी तुम्हारी सोच का सम्मान करते हुए सहस्त्र हामी भर दी थी... और अपने सभी सपनों को कभी ना खुलने वाली पोटली में बंद करके भूल गई... कि मेरे भी कुछ सपने थे.... और इस छोटी-सी दुनियां को सजाने-संवारने में लगी रही.... मैंने तुमसे कहा था- तुम बाहर की जिम्मेदारियां संभालों और घर की तरफ से बेफिक्र रहो, मैं सब संभाल लूंगी... और दोनों ने एक-दूसरे की आंखों में आंखें डालते हुए एक स्वीकृत मुस्कान बिखेरी थी... सोचते-सोचते आरती की आंखों से दो मोती कपोलो पर लुढ़क गए...

      आज उसने एक प्रण किया कि वह अपनी एक पहचान बनाएगी। मंजिल तो थी पर रास्ता नहीं पता था। क्या करें...कैसे करें??? चारों तरफ बस अंधेरा ही अंधेरा दिखलाई दे रहा था आखिर ग्रेजुएशन ही तो की थी उसने....!

 कौन सी जॉब मिलेगी उसे...? और जॉब कर भी ली तो पीछे बच्चों को कौन देखेगा...? उम्र भी तकरीबन 32 हो चुकी है, इस समय कोई skill सीखना... फिर जॉब ढूंढना.....  फिर उसे आगे continue करना.... जीरो से शुरू करना होगा....दो-तीन साल लग जाएंगे... हम्म....।  वह करें क्या..? उसे आता क्या है...? उसने अपनी hobbies को टटोलना शुरू किया... उसे ड्राइंग, आर्ट एंड क्राफ्ट में बहुत रुचि थी। हां... तो अब वो यही करेगी। 


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   अमित को बिना बताए उसने इसके लिए हॉबी क्लासेस जॉइन कर ली और इसे निखारना शुरू किया। अमित के ऑफिस जाने और बच्चों को स्कूल भेजने के बाद जो समय मिलता उसे वह इसी में लगाती। धीरे-धीरे अपनी टीचर की चहेती बन गई। आरती के काम में बहुत सफाई थी, 6 महीने हो गए थे कोर्स को करते हुए। आरती अपने काम में मग्न थी तभी क्लास में रामू काका (चपरासी) आए और कहने लगे...बड़ी मैडम बुलइहे चलौ... आरती मन में कई  शंकाएं लिए उनके साथ चलने लगी.... और मन ही मन सोच का ताना-बाना बुनते जा रही थी... पता नहीं क्या गलती हुई मुझसे....? किस लिए बुलाया होगा....? क्या बात होगी आखिर....? सोचते हुई मैम के केबिन में पहुंची।

 आरती- May I come in ma'am?...

  मैम- Yes!... come and sit down. आज मैंने तुम्हें एक जरूरी काम से बुलाया है।

आरती-  यस मैम, कहिए?

 मैम- आरती तुम्हारा काम बहुत फाइन है। मैं तुम्हें अपने इंस्टिट्यूट की तरफ से एक छोटा से ऑर्डर का असाइनमेंट  देना चाहती हूं, क्या तुम करना चाहोगी? 

आरती- यस मैम, क्यों नहीं... एंड थैंक्यू मुझे इस लायक समझने के लिए। (आरती ने मुस्कुराते हुए मैम का अभिवादन किया)

आज आरती मानों, फूली नहीं समा रही थी... क्योंकि यह उसकी पहली सीढ़ी थी। वह चाहती थी कि कब अमित को यह बात बता दे! 

Aarti-compeleting-an-order-of-packing


पर  वो जानती है कि अमित के लिए ये सब बहुत छोटे लेवल   के काम है। उसने किसी से कुछ नहीं कहा। यह असाइनमेंट पूरा होते ही उसे एक कंपनी का बड़ा ऑर्डर मिल गया.... वो नित नए पायदान चढ़ती गई... 

और आज उसे यह काम करते हुए 2 साल हो गए हैं। आज वह जब  आईने में खुद को देखती है तो सम्मान का अनुभव करतीहै.... अमित का रवैया भी अब धीरे-धीरे बदल गया है और बच्चे .... वो तो उसे अपनी सुपरमॉम कहते हैं!!!!

             

महिला सशक्तिकरण

हम एक  पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं (सर्वविदित है).... और यदा-कदा कुछ खास अवसरों पर नारी के सशक्तिकरण की बात करते हैं... मदर्स डे/मातृत्व दिवस, वूमेंस डे/महिला दिवस आदि। क्या हम इन दिनों के आश्रित हो गए हैं...?? या स्त्रीत्व का उसी की पहचान बताने के लिए दो,चार स्लोगन, टीका-टिप्पणी, अनुच्छेदक्तव्य कहकर अपना दायित्व पूरा करते हैं तथा दो-चार लोगों से वाहवाही बटोर लेते हैं। यह क्षणिक अवसर इक तात्कालिक मुद्दा ना होकर सर्वकालिक मुद्दा है हम अपने दैनिक जीवन में आसपास के सामाजिक परिवेश में इस तरह की बहुत सी घटनाएं सुनते रहते हैं। जो नारी के आत्म सम्मान, नारी के अस्तित्व को सिरे से तार-तार कर देती है।


  जयशंकर प्रसाद जी ने कहा-

क्या कहती हो ठहरो नारी! 

संकल्प अश्रु-जल-से-अपने। 

तुम दान कर चुकी पहले ही, 

जीवन के सोने से सपने। - नारी तुम केवल श्रद्धा हो


जयशंकर प्रसाद जी की पंक्तियां नारी तुम केवल श्रद्धा हो से भाव यह है कि नारी तुम श्रद्धा के योग्य हो। तुम जीवन के समतल में पीयूष अर्थात अमृत के समान बहती हो। हर सुख-दुख में साथ देती हो... इसलिए हे नारी! तुम श्रद्धा की पात्र हो।

     आज के समय में कहा जाए तो यह नारी जागरण का ही युग है। देश ही नहीं विदेशों में भी महिलाओं ने अपनी प्रतिभाओं का परचम फहराया है परंतु यह कहना भी किंचित गलत ना होगा कि आज भी कई ऐसे कर्मकांड है जिसे केवल पुरुष ही कर सकते हैं कई ऐसे मंदिर है जिनमें स्त्रियों का जाना वर्जित है। यहां तक की बच्चे के एडमिशन के समय भी पिता का नाम अनिवार्य रूप से आवश्यक सूची में आता है। परंतु कमोबेश जो स्थिति स्त्रियों की समाज में 19वीं सदी के पूर्वार्ध में थी उससे कुछ ही बेहतर अब हो पाई है। पर अब भी बहुत सी सोच की बेड़ियों को तोड़ना है! 


मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा-

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी....

आँचल में है दूध और आँखों में पानी....!!!


मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपने प्रबंध काव्य यशोधरा में जिसका प्रकाशन वर्ष 1933 में हुआ था, इन पंक्तियों को लिखा था। इसमें गौतम बुद्ध के गृहत्याग को केंद्र में रखकर, गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की विरह-पीड़ा को विशेष महत्व दिया गया है। पंक्तियां बहुत ही हृदय स्पर्शी और मार्मिक है। आज भी इन पंक्तियों के अर्थ का महत्व कम नहीं हुआ है।


 ✍  मेरी कलम से


हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। जहां हम समझ चुके हैं कि विश्व हो... देश हो... समाज हो या फिर परिवार हो सभी में आज नारी बराबर की भागीदारी निभा रही है।  सामाजिक रिश्ते कहूं या पारिवारिक भागीदारी सभी में नारी व पुरुष दोनों का  ही  50-50 का साथ है। दों मजबूत स्तंभ है, दो पहिए हैं, दोनों के तालमेल से ही गृहस्थी की गाड़ी चलती है।

मेरा आशय दोनों को समान मानने से है, जिसमें ना किसी के वर्चस्व की बात होगी और ना ही किसी को कमतर आंकने की। 

कब होगा ऐसा समाज...? कब ये वास्तविकता के धरातल पर यथार्थ रूप लेगा...??? 


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                               स्वरचित

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