रिटायर भाग 2 (Retire Part-2) Hindi Story
हैलों! दोस्तों... मैं आपकी दोस्त पुष्प की दुनियां मुझे आप पुष्पा राज के नाम से भी
जानते हैं। आज मैं आप सबके सामने अपनी कहानी का पिटारा लेकर उपस्थित हुई हूँ, जिसका नाम है- रिटायर।
यह इस कहानी का दूसरा भाग है। यदि आपने इससे इसके प्रथम भाग "रिटायर भाग-1" को नहीं पढा़ है तो कृपया
पहले उसे पढ़ें लिंक इस कहानी के अंत में दिया गया है इससे आपको यह भाग 2 समझने में सरलता होगी।
पिछले अंक में आपने पढ़ा कि हमारे पड़ोस में नव-दंपति जोड़ा रहने आया.... उनके 2 पुत्र विहान और आयुष,
जिन से मुझे बहुत ही स्नेह था.... विहान यू एस में settle हो गया था और आयुष कोटा में... कुछ समय बाद विहान
का कॉल आता है कि उसने वहां शादी कर ली है... लेखा और राजन यह खबर सुनकर कुछ विस्मित हो जाते हैं....
अब आगे...
राजन लेखा की पुत्रवधु
लेखा कुछ परेशान लग रही थी सोच रही थी राजन को कैसे बताऊं...
राजन- क्या हुआ...क्या कहा विहान ने... कब आएगा...कुछ बताया..? (उत्सुकतावश राजन ने एक साथ कई सवाल
पूछ लिए)
लेखा- हां... जल्दी ही आएगा बोला
राजन- कब तक कुछ बताया विहान ने?
लेखा- कुछ साफ तो नहीं कहा, बस बोला...जल्दी आऊंगा
राजन- अच्छा और कुछ बताया?
लेखा- हां... उसने वहां एक भारतीय लड़की से शादी कर ली है
राजन- शादी कर ली है!.. एक बार बताया भी नहीं, एक फोटो ही भेज देता
लेखा- कह रहा था जल्दी मिलवाने आऊंगा। फिर आप दोनों को यूएस घुमाने ले चलूंगा आप दोनों अपना वीजा
तैयार करवा लेना।
फोटो canva से ली गई है
2 महीने बाद विहान का अर्चना को लेकर भारत आना हुआ यूएस में रहने के बाद भी अर्चना में भारतीय गुण
कूट- कूटकरभरे थे। बड़ों का आदर करना, सास-ससुर की सेवा करना, साथ में समय बिताना। सब उसके गुणों में
शामिल थे। जल्दी ही अर्चना ने सभी का मन मोह लिया।
विहान- (सुबह चाय की चुस्की लेते हुए) पापा कल हम लोग चले जाएंगे बस एक हफ्ते की ही छुट्टी मिली थी।
राजन- कुछ दिन और रुक जाते।
विहान- मन तो बहुत था पापा पर इतनी छुट्टी मिली थी फिर next time जैसे ही काम से फ्री होंऊगा जरूर
आऊँगा।
राजन- ठीक है तुम लोग आए तो घर की रौनक बढ़ गई अच्छा लगा।
विहान- आप लोगों ने अपना वीजा बनवाया?
राजन- छोड़ो भी बेटा हमारे मेरे लिए तो यह भारत ही ठीक है अपना देश आखिर अपना ही होता है
विहान- पापा...अब घूमने तो चल ही सकते हैं। अगली बार आऊंगा तो दोनों को लेकर जाऊंगा.... आयुष क्या कर
रहा है आजकल?
राजन- वह अभी बंगलौर में है। अपने स्टार्टअप की तैयारी में लगा है... कह रहा था बिजनेस प्लान एवरीथिंग इज रेडी अगर फंड अच्छे
से मिल जाए तो बिजनेस बूस्ट मिलेगा।
विहान- तो मेरा छोटा सा भाई इतना बड़ा हो गया...
राजन- हाँ...। हेल्प के लिए पूछा था मैंने आयुष से पर तुम तो जानते हो उसका नेचर।
विहान- वह कर लेगा पापा He is a gem... (मुस्कुराते हुए)
अगली सुबह राजन और लेखा ने दोनों को बहुत सारा आशीर्वाद दिया और भीगी पलके व भारी मन से विदा
किया। कुछ समय बाद विहान का कॉल आता है कि मम्मा आप अपनी पैकिंग करके रखिएगा मैं नेक्स्ट संडे को आ
रहा हूं आप लोगों के पास। पापा कैसे हैं? लेखा हां वह भी ठीक है... डायबिटीज है, पर मीठा कहां कम करने वाले हैं।
विहान- ओहो! मां उन्हें थोड़ा health conscious बनाइये अपनी तरह।
लेखा- वह कहां मानने वाले हैं बेटा।
विहान- हां... यह तो है.. चलो मैं संडे को आता हूँ।
राजन- क्या बात हुई बड़ी खुश लग रही हो।
लेखा- खुश तो होंगी ही अगले हफ्ते बेटा आ रहा है विहान आ रहा है।
राजन- क्या विहान आ रहा है!... यह तो बहुत खुशी की बात है।
संडे को सुबह-सुबह विहान का आना हुआ पूरा दिन साथ बिताया शाम को मम्मा से बोला-मम्मा आपने
पैकिंग किया नहीं।
लेखा- (कुछ आशंका भरे शब्दों से कहती है)...वो..बेटा...पापा की पैकिंग?
(विहान ने अभी तक एक बार भी राजन को साथ अरे चलने की बात नहीं कही थी)
विहान- मम्मा इस बार तो बस आपकी टिकट कराई है। अगली बार पक्का दोनों को एक साथ घुमाऊंगा मेरा भी
ड्रीम है।
रात को लेखा को करवटें बदलते देख राजन ने पूछा क्या हुआ?
लेखा- जी विहान ने अपने साथ चलने को कहा
है... पर आपका नाम एक बार भी नहीं लिया, कहता हैं अगली बार दोनों को साथ ले जाऊंगा ।
राजन- बस इतनी सी बात के लिये परेशान हो.. महंगा देश है, तुम इस बार चली जाओ.. फिर वो कह रहा है ना..
अगली बार दोनों को ले चलेगा।
लेखा- आप की देखभाल यहाँ कौन करेगा।
राजन- मैं अपनी देखभाल कर सकता हूँ। तुम बेफ़िकर होकर बेटे के साथ जाओ... लेखा जो अभी तक राजन के
बारे में सोच- सोच कर परेशान हो रही थी। उनका यह रवैया देख कर मन को कुछ शांति मिली... राजन मन में कैसे
कुछ ला सकते थे बेटे के लिए, आखिर पिता थे। लेखा जानती थी वह अपने बच्चों से कितना प्यार करते हैं।
अगली सुबह.......
लेखा- दही रखा दिया है, फ्रिज में फ्रूट्स रखे है। टिफिन के लिये मैंने बात कर ली है। दोनों
टाइम वह दे जायेगी और हाँ अपनी medicine सही समय पर लेना मत भूलना।
राजन- अच्छा बाबा अब मेरी फ़िकर करना छोड़ो नहीं तो फ्लाइट मिस हों जायेगी ।
विहान- अच्छा पिताजी चलता हूँ पैर छूते हुए।
आज तक कभी भी राजन और लेखा इसने लंबे समय के लिए दूर नहीं हुए थे। वे अब तक जहां भी गए थे साथ
जाया करते थे। यह 3 महीने का समय मानो ना बीतने वाले एक टाइम लूप के समान लग रहा था।
मैं जब रक्षाबंधन पर मम्मी के यहाँ गई तो आन्टी के घर जाना हुआ। पता चला वो विहान के साथ गयी है।
मैं बहुत उत्सुक थी। सोचा आंटी आएंगी तो पूछूंगी क्या यूएस सच में पैसा है जैसा फिल्मों में दिखाई देता है?..
उनको वहां कैसा लगा... वहां की लाइफ कैसी है... वहां का कल्चर कैसा है... ब्ला ब्ला ब्ला... मैं हवाई घोड़े पर
सवार, मेरी सोच में ख्याली पुलाव बनाती जा रही थी।
यू एस में लेखा
यूएस पहुंचते ही.....
विहान ने घर पहुंचकर दरवाजे से ही अर्चना को आवाज़ लगाता है। अर्चू- अर्चू देखो कौन आया है..अर्चना अंदर से
आती है और लेखा को प्रणाम करती है... सफर कैसा रहा मम्मा?
लेखा- अच्छा था।
अर्चू- आपलोग हाथ- मुंह धो लीजिये...मैं चाय बनाती हूँ।
लेखा- फ्रेश होकार घर देखने लगती है।
अर्चू- रास्ते में कोई दिक्कत तो नहीं हुई?
लेखा- अरे नहीं...सफर अच्छा था तुमने घर बहुत अच्छा सजाया है।
अर्चू- thank you मम्मा.. जॉब के बाद ज्यादा समय तो नहीं मिलता पर जितना मिलता है कोशिश करती हूं।
अगली सुबह विहान और अर्चना ऑफिस चले जाते हैं लेखा पूरे दिन घर पर अकेली रहती है। शाम को ऑफिस से
आकर अर्चना पूछती है आज का दिन कैसा रहा मम्मा।
लेखा- अच्छा था... बस बोर हो गई पूरे दिन क्या करूं समझ नही आ रहा था।
अर्चू- मम्मा! मैं सामने वाली आंट से कह दूंगी। वह कल से आपके साथ इवनिंग वॉक पर चली जाया करेंगी। वह भी
इंडियन फैमिली है काफी अच्छी लेडी है।
लेखा-अरे वाह! फिर तो मुझे एक दोस्त मिल जाएगी... खुश होकर
नई दोस्त
अगली शाम डोर बेल बजी सामने 40-45 वर्ष की एक बॉब हेयरकट वाली महिला खड़ी थीं। अपना परिचय
दिया... मेरा नाम लक्ष्मी अय्यर है मुझे अर्चू ने कॉल किया था।
लेखा- ओह...नमस्ते मेरा नाम लेखा है... अंदर आइए ना...
LA-नहीं चलिए वॉक पर चलते हैं वही बातें करेंगे।
लेखा- डोर लॉक करते हुए... चलिए लक्ष्मी अय्यर जी।
LA- मुझे यहां सब प्यार से LA बुलाते हैं आप भी मुझे इसी नाम से पुकार सकती हैं।
लेखा- अच्छा नाम है शॉर एंड स्वीट।
LA- आप कितने दिनों के लिए आई हैं।
लेखा- 3 महीनों के लिए... उदासी से
LA- तो एक अच्छा समय मिलेगा हम दोनों को साथ बिताने के लिए।
लेखा- हां वह तो है... वैसे आप क्या करती हैं।
LA- मेरा एक छोटा सा इवेंट मैनेजमेंट का बिजनेस है।
लेखा- अरे वाह! आप तो मल्टी टैलेंटेड है।
LA- आप क्या करती हैं?
लेखा- मैं हाउस वाइफ हूं।
LA- घर संभालना भी बहुत बड़ा काम है... सच में मैं मजाक नहीं कर रही। लेखा मैं भी हाउसवाइफ हूं... बच्चे बड़े हो गए तो सब अपनी लाइफ में बिजी हो गए मैं बोर हो रही थी तो इसीलिए एक छोटा सा कोर्स कर लिया और शुरू कर दिया बिजनेस।
लेखा- बहुत अच्छा किया।
LA- ज्यादा बड़ा नहीं है मेरा बिजनेस घर से ही करती हूँ, बहुत छोटे स्केल पर है... पर बिजी रहती रहती हूं तो
अच्छा लगता है।
लेखा- यहां का कल्चर अलग है, बहुत भागदौड़ है। भारत का कल्चर अलग है। वहां पर भी महिलाएं वर्किंग है पर
अब भी बहुत से परिवार में महिलाएं हाउसवाइफ है।
LA- छोड़िए इन सब बातों का आपका विहान बहुत अच्छा बच्चा है बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं आपने।
लेखा- जी थैंक यू
LA- देखिये चलते चलते घर भी आ गया फिर मिलते है बाय।
लेखा- बाय
दिनचर्या अच्छी कटने लगी थी दिन कैसे बीत जाता था पता ही नहीं चलता था और समय- समय पर राजन् और
आयुष से बात हो ही जाती थी!
लेखा की भूल
लेखा ने सोचा आज विहान का जन्मदिन है। उसकी पसंद की कटहल की सब्जी बनाती हूं.... पर मुझे तो यहां
का मार्केट पता ही नहीं है.... तो क्या हुआ, मार्केट पता नहीं है तो.... लोगों से पूछते- पूछते चली जाऊंगी.... विचार
कर उसने एक कैरी बैग लिया और चल दी। सुपर मार्केट पहुंच कर उसने कटहल और अन्य जरूरत की सब्जियां
ली। वहां भारत की तरह कटहल को छीलकर और काटकर नहीं दिया जाता बल्कि पूरा दिया जाता है। घर लाकर
खुद ही उसे तैयार करना पड़ता है। लेखा मन ही मन खुश थी और घर आते ही किचन में शाम की तैयारी में लग
गयी। सब्जी बन कर तैयार थी... तभी डोर बेल बजी टिंग-टोंग... अभी कौन हो सकता है। विहान और अर्चना को तो
आने में अभी काफी टाइम है।
दरवाजा खोलते ही सामने विहान था। वह माँ पर बरस पड़ा.... कहाँ चली गई थी माँ...
एक कॉल ही कर देती... कितनी चिंता हो रही थी... पूरे दिन सभी पड़ोसियों को फोन करके पता किया?
लेखा- क्या हुआ विहान बेटा... लेखा कुछ समझ नहीं पा रही थी ।
विहान- मां आप कहां गई थी दिन में?
लेखा- वेजिटेबल मार्केट चली गई थी।
विहान- पड़ोसियों ने फोन करके बताया कि घर पर लॉक लगा है। मैं परेशान हो गया था। आपको तो यहाँ का
मार्केट पता भी नहीं है।
लेखा- पूछते- पूछते पहुंच गई थी।
विहान- आखिर आपको जरूरत क्या थी मार्केट जाने की।
लेखा- अपनी आवाज को संभालते हुए... बेटा आज तुम्हारा जन्मदिन है, इसीलिए तुम्हारी पसंद के कटहल के
कोफ्ते बनाने का मन हुआ।
विहान- ओ माँ!
थोड़ी देर में अर्चू भी ऑफिस से आ गई। विहान क्या हुआ था... कहाँ गई थी मम्मा?
विहान- कुछ नहीं डार्लिंग, बस वेजिटेबल मार्केट गई थी।
अर्चू- एक कॉल करके बता देतीं... कितना परेशान हुए हम पूरे दिन।
विहान- कोई बात नहीं.. वो ठीक है मेरे लिए इतना ही काफी है।
रात को खाने के टेबल पर...
विहान- खाना बहुत अच्छा बना है मम्मा...
लेखा- थैंक्यू बेटा
अर्चू- सच में मम्मा यह आपके हाथ के खाने की बहुत तारीफ करते हैं और आज की सब्जी तो बस लाजवाब है!
3 महीने पूरे होने को आए...
अर्चू-विहान एक बात कहूं।
विहान- हां बोलो
अर्चू- देखो विहान... आज नहीं तो कल हमें अपने फ्यूचर की प्लानिंग करनी है। बेबी होने के बाद मैं घर और ऑफिस एक साथ कैसे संभाल पाऊँगी.... मुझे कुछ टाइम लगेगा
तालमेल बिठाने में... तब अगर मम्मा हमारे साथ में जाए तो?.. इस देश में एक caretaker और babysitter रखना
का खर्चा तो तुम जानते ही हो।
विहान- हूँ... तुम कह तो ठीक रही हो..देखते हैं।
आज लेखा के मन में कुछ बेचैनी सी-थी। आखिर कल सुबह वह अपने भारत वापस जा रही थी। नींद न
आने के कारण वह टहलने लगी। तभी उसके कानों में अर्चू और विहान की ये बातें पड़ी... वह सोच में पड़ गई कि
राजन को छोड़कर दोबारा इतने समय के लिये यहाँ आना कैसे हो पायेगा... उनकी देखभाल कौन करेगा... वह
इजाजत देंगे तो फिर देखूंगी... क्या अगली बार विहान पापा को भी साथ चलने के लिए कहेगा.... क्या इस धरती पर आकर सभी बदल जाते हैं....अपनापन कहीं खो जाता है.... क्या विहान भी बदल गया है...नहीं नहीं उसमें अभी भी भारतीय मूल्य है...अगर अगली बार उसने राजन को चलने को नहीं कहा तो...
सुबह जाने की तैयारी हो रही थी.... LA ने अपनी तरफ से एक कांजीवरम साडी़ भेंट की। विहान ने भी कई
गिफ्ट दिये। विहान-अर्चू, लेखा को छोड़ने एयरपोर्ट आए। flight के लिए जाते हुए बाय किया।
विहान- अपना ख्याल रखना... पापा आपको लेने एयरपोर्ट पर आ जाएंगे।
लेखा- अच्छा बेटा.. बाय.. तुम लोग भी अपना ख्याल रखना।
भारत वापसी
भारत की धरती पर कदम रखने का एक अलग ही एहसास है। अपनी मिट्टी की खुशबू में एक अजब सी
कशिश है। लेखा को आज ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह अपने घर वापस आई हो। जिस प्रकार एक छोटे बच्चे
को स्कूल से घर वापस आने पर ख़ुशी का एहसास होता है। आज ऐसी ही कुछ खुशी लेखा को भी थी।
राजन एयरपोर्ट पर रिसीव करने आए थे... वहीं से प्रश्नों की झड़ी लग गई।
सभी photos canva और pixabay से ली गई है
लेखा- बहुत कमजोर लग रहे हैं। पक्का टाइम पर खाना नहीं खाया होगा... अपना ध्यान नहीं रखते होंगे...?
राजन- बस!... आते ही शुरू हो गई।
अरे बाबा जब आप कह गई थी अपना ध्यान रखने को तो आपके हुकुम को कैसे टाला जा सकता था।
लेखा- तो फिर इस बीच में बीमार पड़े होंगे...?
राजन- अजी... बीमार पड़े मेरे दुश्मन। मुझे तो फिट रहना था अपनी लेखा जी के लिए.. और दोनों हंस पड़ते है।
घर पहुंच कर...
लेखा- राजन आपकी आयुष से कुछ बात हुई?
राजन- हाँ.. होती रहती है।
लेखा- लास्ट टाइम कब हुई थी?
राजन- यही कोई 15 दिन पहले।
लेखा- मेरी भी तभी बात हुई थी। कुछ परेशान लग रहा था पर अपनी परेशानी बताई नहीं।
राजन- किसी काम में बिजी होगा, शायद इसलिए।
लेखा- हफ्ते में एक बार उसका कॉल जरूर जाना जाता था। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि इतने दिनों तक
उससे बात नहीं हुई। राजन- तुम नाहक परेशान होती हो, वह ठीक ही होगा।
लेखा- भगवान करें.. आप सही हो और मेरा मन गलत। पर मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा, उसकी चिंता हो रही है।
To be continued...
अगले अंक मे जानिए......
★क्या कारण था आयुष ने इतने दिनों तक बात नहीं की...
★किस क्या फिर विहान ने लेखा और राजन को यूएस बुलाया...
★उस बोर्ड पर "राजन-लेखा वृद्धाश्रम" (Rajan-Lekha Old Age Home) क्यों लिख था...
जानने के लिए अगले अंक तक इंतजार करें। अगला अंक तीसरा व अंतिम होगा। तब तक के लिए मैं आपकी दोस्त पुष्प की दुनियां आपसे विदा लेती हूं
नमस्ते🙏
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कहानी का तीसरा भाग लेकर जल्दी ही आप सबके समक्ष प्रस्तुत होऊँगी तब तक के लिए नमस्कार🙏
आप कहां तक इस भावुक कहानी (imotional story) में मेरे उपरोक्त वक्तव्यों से जुड़ पाए... मुझे कमेंट कर बताएं ताकि मैं इसी प्रकार
की और रचनाएं आप तक पहुंचा सकूं...
अगर आप इस से संबंधित कोई विचार मुझसे सांझा करना करना चाहते है, तो आपका स्वागत है...☺️
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