स्त्री | Hindi Poetry on Nari
हेलो दोस्तों!
कैसे हैं आप सभी...? उम्मीद करती हूं आप सब स्वस्थ होंगे और अपने अपने घरों में सुरक्षित होंगे। मैं आपकी
दोस्त पुष्प की दुनियां आज आपसे स्त्री के अस्तित्व और उसके समाज में औचित्य के बारे में बात करने आई हूं।
क्या स्थान उसे समाज में दिया गया है...? और वह क्या समाज से चाहती है...? वह किसकी अधिकारिणी है...?
मुख्य बिंदु:-
स्त्री क्या है?
स्त्री ना अबला, नि:स्सहाय, ना भोग्या है इस वसुंधरा पर वो तो केवल जीवन संचरित कर पूरे समाज को पोषित
करती है। उसके बिना ना परिवार, ना समाज और ना ही पृथ्वी की कल्पना की जा सकती है। वह तो दानी, देयता
है। अपने अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए सदैव संघर्षरत रहती है। एक पहचान पाने को उसके सभी प्रयास
उद्वेलित रहते हैं।
इतना सब देने के बाद भी वह एक स्वतंत्र पहचान की अधिकारिणी क्यों नहीं मानी जाति है?.....
यह प्रश्न मैं आप पर छोड़ती हूं...... विचारणीय है!
यहां मेरा आशय स्त्री व पुरुष में से कौन सन श्रेष्ठ है के द्वंद को छेड़ने का नहीं है। दोनों अपने आप में उस
ईश्वर की बनाई हुई श्रेष्ठ कृति है....
स्त्री केवल एक पहचान चाहती है। ना उसे सिंहासन चाहिए और ना ही कोई पुरस्कार.....
उसे तो केवल और केवल एक छोटी -सी अपनी दुनियां में अपनों की नजरों में सम्मान का भाव चाहिए।
✍ सुझाव/ सलाह (solution)
अपने विचारों को मैं यह बॉलीवुड का गीत गुनगुनाते हुए विराम देना चाहूंगी.....
इस गीत को गुनगुनाते रहिए और सदा मुस्कुराते रहिए....🙂...!
"आओ डार्लिंग हम तुम दोनों मिलजुल के रहेंगे...
तुम हमें गुड कहना हम तुमको वेरी गुड कहेंगे....."
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आज का यह अंक आपको कैसा लगा?... मुझे अपने विचार कमेंट कर बताएं ताकि मैं इसी प्रकार की और रचनाएं
आप तक पहुंचा सकूं....
सुंदर पंक्तियां
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