"अपनी-अपनी दुनियाँ "- कविता, लेख | Hindi Poetry, Article
हैलो दोस्तों!,... मैं आपकी दोस्तपुष्प की दुनियां आज आपके सामने एक नया विषय कर लेकर प्रस्तुत हुई हूं जो है... "अपनी अपनी दुनियां" (Poetry About: Social Life).
आज का परिवेश |Today's Social Life Meaning
आप माने या ना माने जब से इस समाज का ग्लोबलाइजेशन हुआ है तभी से हम सूक्ष्म स्तर पर या यूं कहेकि छोटे लेवल पर हम अपने आसपास की गतिविधियों से दूर हो गए हैं। हमें यह तो पता है कि दूर विदेश में सात समंदर पार क्या हलचल हो रही है (For People Living A Fake Life On Social Media) परंतु हमें हमारे अपने मोहल्ले, कस्बे में क्या गतिविधियां हो रही है..? क्या अच्छा बुरा घट रहा है..? इससे हम अनजान है। तकनीक से जहां हम चार पायदान ऊपर बढ़े हैं, वहीं एक पायदान नीचे भी आ गए हैं।
जिंदगी केवल और केवल एक रेस बनकर रह गई है। सबको टॉप पर जाना है.... अगर नहीं पहुंचे तो समाज क्या कहेगा...? लोगों को जवाब क्या देंगे...? स्टेटस नहीं बना पाएंगे..? फलां... फलां... फलां...जितनी अधिक चकाचौंध बढ़ है... उतना ही मन के भीतर खालीपन बढ़ता गया है... नहीं तो आज सुसाइड केस इतने अधिक क्यों होते...? पहले जो समग्र परिवार में रहते थे, संयुक्त परिवार में रहते थे.... अब एकल परिवार में रहने लगे... और तो और एकल परिवार में भी केवल तीन चार लोगों के बीच विचारों के मतभेद बने रहते हैं। सब की एक ही शिकायत होती है... वह मुझे नहीं समझते... वह मुझे नहीं समझते... कॉम्प्रोमाइज तो जैसे एक अंजाना सा शब्द बनकर रह गया है।
एकांकीपन
आज हर कोई अपनी एक अलग स्पेस तलाशता रहता है। सभी को स्पेस चाहिए.... फिर कहते हैं कम्युनिकेशन
गैप आ गया! चाहे वह दो पीढ़ियों के बीच में हो या दो लोगों के बीच में...
ये आगे बढ़ने की रेस इतना विकराल रुप रुप ले चुकी है... कि हर कोई अपने आप को सर्वोपरि बताने में लगा हुआ
है। इसके लिए वह एक दूसरे की टांग खीचने से भी गुरेज नहीं करते। आज सफलता के सभी के अपने-अपने
पैमाने हैं और शायद इसीलिए अंतर वीराने हैं..!!! देखा जाए तो सभी ने अपनी एक अलग दुनियां बना रखी है... यहां सभी के अपने अपने अफसाने हैं...।
हम सभी के जीवन अपने में उपन्यास की कहानी से कम नहीं है... और किसी-किसी में तो फिल्मी मोड़ भी आ जाते हैं... इतनी नाटकीय घटनाओं से भरा हमारा जीवन है....! बाद में सोचते हैं कि किस से शेयर करें
अपनी सफलता, असफलता...? किसको बताएं..? किसके साथ चुटकी लेकर हंसे...? किसके कांधे पर सिर रखकर
रोए...? अरे! इस भागदौड़ में तो हमने कोई सच्चा दोस्त ही नहीं बनाया... काश!... काश के हमारे पास कोई एक, एक सच्चा दोस्त होता... जिस से मन का सब हाल कह डालते काश काश काश...!!!!
अन्धकूप-सी वेदना
कभी-कभी हमारे हृदय की वेेदना मुखर हो उठती है। अंतर के झंझावात शब्दों का रूप लेे लेते हैं।
जीवन की कटु सच्चाई सामने आ जाती है। यह जीतने की रेस इतनी भयावह हो चुकी है कि लोग एक दूसरे को
पीछे खींचने और नीचे गिराने से भी नहीं चूकते। 'हमारा' शब्द का स्थान 'तेरा-मेरा'ने ले लिया है। कहने को दोस्त सैकड़ों की गिनती में है पर फिर भी मन के अंतर कहीं भीतर अंधेरे का ही बसेरा है....
आह!.....गहन अन्धकार कूप...... जहां एक रौशनी की लौ ढूंढते हैं....पर उस पार निर्निमेष नेत्रों से ढूंढने से......
इसके अंत का गर्त खोजने से भी नहीं मिलता.....
हर जीवन अपने में अनमोल है, हर एक के अपने किस्से और अफ़साने हैं.... हर किसी की दौड़ रोटी तक की है,
जिसके पास रोटी है उसकी दौड़ स्टेटस के लिए है, जिसके पास दोनों है उसकी दौड़ रिश्तों में विश्वास ढूंढने की
है..... पर दौड़ सभी रहे हैं..... अपनी-अपनी किस्सों, अफसानों की पोटली लिए....... अनवरत, अथक दौड़ !!!
मानव के सभी प्रयास केवल सफलता पाने को प्रेरित हैं... सफलता का द्योतक केवल और केवल पद, प्रतिष्ठा
और पैसा बनकर रह गया है। अपनापन, मेल-मिलाप और सामाजिकता यह सब कहीं दूसरे पायदान चले गए हैं...
कहने को तो जानने वालों की भीड़ है..... पर आसपास शून्य-सन्नाटा पसरा है....... नि: शब्द शून्य..sss....!!!
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