एक स्वेटर की यात्रा- व्यंग्य | Hindi Humour Story
हैलो दोस्तों!
कैसे हैं आप सभी...आशा करती हूं अपने-अपने घरों में सुरक्षित होंगे। मैं आपकी दोस्त पुष्प की दुनियां आज
उपस्थित हूं एक नई विधा लेकर 'व्यंग्य विधा' इसमें लिखने का यह मेरा पहला प्रयास है। यदि कोई त्रुटि हो तो
अवगत कराइएगा और पसंद आए तो सराहना की आशा करती हूं... तो शुरू करते हैं आज की कहानी....
Table Of Content:-
बात 90 के दशक की है। मेरा बचपन तभी का है ना.... इसीलिए... उस समय मेरी आयु होगी करीबन सात
वर्ष.... दिल्ली की सर्दी थी, ठिठुरा देने वाली, दांतों को किटकिटा देने वाली, कभी-कभी ज़ीरो डिग्री से भी नीचे चली
जाने वाली ..... नहाने का मन ना होता था पर हमारी माता जी.... उन्होंने तो जैसे कसम ले रखी थी, रोज हम सभी
को नहला देने की। नहाने के बाद ऐसा मालूम होता था मानो कलेजा मुंह को हो आया हो.... ऐसा लगता था कि
नहाने के पश्चात जैसे हमें किसी मेडल से नवाजा जाएगा तदोपरांत वीरता पूर्ण मुस्कान थी चेहरे पर और शांति का भाव
था.... अजी माता जी से डांट जो नहीं पड़ेगी अब। साहब... माताजी से डांट पढ़ने के सभी अवसरों को हमने सिरे से
नेस्तोनाबूद कर दिया था, अब कोई चांस नहीं था डांट पड़ने का.... हमें नहलाने के पश्चात माताजी ने बक्से से एक
स्वेटर निकाला जो पिछले वर्ष दीदी ने पहना था और उसके पहले भ्राता श्री ने.... तदोपरांत अब यह हमारे हिस्से
आया था.... और किसी को आएगा ही नहीं ना अब इस घर में... इसीलिए।
बात कुछ इस तरह थी.... कि आज से 5 साल पहले माता जी को स्वेटर बनाने की सूझी। साथ वाली
परमीला आंटी जिनका नाम प्रोमिला था.... परंतु बोलचाल की भाषा में परिष्कृत कर मुहल्ले वालों ने, परमीला कर
दिया गया था.... तो परमीला आंटी रोज अपने घर के चबूतरे पर बैठकर स्वेटर बुना करती थी.... (सर्दियों में
महिलाओं का सबसे चहेता काम, जो धूप में बैठकर किया जाता है)... हमारी माता जी को उनके स्वेटर का
डिजाइन बहुत पसंद आया। बस फिर क्या था!...अगले ही दिन बाजार से कई ऊन के लच्छों का घर में आगमन हो
गयाा, म को ही बैठकर उन सभी को सुलझा कर गोले बनाए गए... हम नन्हे बच्चों को भी इसमें लगा दिया गया।
दोनों पैरों में लच्छों को फंसा कर गोल-गोल-गोल-गोल बस लपेटते जाना है बहुत मजेदार काम है...। हुंह (तिरस्कार
से).... आजकल के गेम पैड पकड़ने वाले बच्चे क्या जानें?.... इस आनंद को....
रात तक सभी गोले बनकर तैयार थे। अगले दिन काटे(सिलाईयों) पर उनका बॉर्डर बना डिजाइन डालने
की तैयारी हो गई। एक ही हफ्ते में जनाब...स्वेटर बनकर तैयार था। भ्राता श्री को पहनाया गया.... वे इस स्वेटर को
पहन कर फूले न समाते थे... मानों राज्याभिषेक हुआ हो और पूरी सल्तनत उन्हें मिल गई हो। वैसे कुछ भी नया हो
तो....बच्चों को नया देख कर ही पता नहीं क्यों इतनी खुशी होती है। हांजी! तो उसके बाद हमारी दीदी जी का नंबर
आया उन्होंने भी उसे अच्छे से दो साल पहना... फिर.... अब हमारी बारी थी परंतु हमें यह कुछ खास पसंद नहीं
था... या तो स्वेटर पुराना हो गया था या हमारी पसंद नई थी। हमें वह बाजार के बुने लाल-पीले, रंग-बिरंगे स्वेटर
बहुत पसंद आते थे... परंतु मजाल है कि माता जी ने कभी खरीदे हो। हम पैर पटके, जमीन पर लोटे तो भी ना
मिलते थे। मिडल क्लास फैमिली जो थी! अब क्या बताएं... मन मारकर पहनना पड़ा उसे ही।
दूरदर्शन का सुनहरा दौर | Golden era of Doordarshan
यह वह समय था जब छतों पर जाकर एंटीना घुमाया जाता था तब जाकर कहीं रामायण देखने को मिलती थी।
इसमें भी बारी लगती थी... अब की बार कौन जाएगा छत पर। मेरे और छोटे भाई की ही शामत आनी थी... कर भी
क्या सकते थे..? कोई और दूसरा उपाय ना था। गिन-चुनकर दो-चार ही प्रोग्राम आते थे दूरदर्शन पर, हम बच्चों के
लिए और वो हमें वह बहुत पसंद थे। शाम 4:00 बजे से 5:00 बजे तक पंचतंत्र, बेताल पच्चीसी, कभी टीपू सुल्तान,
कभी कामिनी कौशल जी के कठपुतली से कहानी सुनाने वाला प्रोग्राम... अब हमें नाम याद नहीं रहा उसका,
आपको याद हो तो बताइएगा ... शायद दादी मां की कहानियां जैसा कुछ नाम था।
किफायत की हिमायत | Advocacy of economy
हां...तो हम मिडिल क्लास फैमिली की बात कर रहे थे अजी जब तक पेस्ट को दबा-दबा कर आखरी बूंद तक
ना निकाल ली जाए और चुपुक करके वह बेचारा अंदर कहीं छुपा बैठा बाहर आने को विवश ना हो जाए, तब तक
आप काहे की मिडिल क्लास फैमिली वाले... अगर आपने कभी उतरन के कपड़ों का पोंछा नहीं लगाया तो आप
मिडिल क्लास फैमिली ने के नहीं हो सकते... अगर आपने फैंटा, माजा, कोका-कोला की बोतलों को धो-धोकर
गर्मियों के मौसम में दो-तीन महीनें फ्रिज में पानी भरकर रखने में इस्तेमाल नहीं किया, तो आप मिडिल क्लास के
नहीं हो सकते.. यदि आपने उपरोक्त सभी काम नहीं किए हैं तो आप मिडिल क्लास के नाम पर धब्बा है। आप
यकीनन किसी टाटा, बिरला के औलाद होंगे.... पता चले तो चरण पखार लूं।
निरीह स्वेटर के लिए मौन | Silence for the innocent sweater
यह तो थी मिडिल क्लास फैमिली होने की विवरणात्मक व्याख्या। अब आते हैं स्वेटर पर.... तो हमें भी वह
स्वेटर मजबूरन पहनना ही पड़ा और दूसरा कोई उपाय ना था। इतने पर ही यह सिलसिला नहीं रुका, हमारे छोटे
भाई को भी वह स्वेटर पहनाया गया। धन्य हो!.. तुम.. स्वेटर... तुम्हारा जीवन धन्य है... तुम कितने महान हो, जो
इतने लोगों के काम आए...!
अब छोटे भाई को भी वह स्वेटर छोटा हो गया था। तब हमारे मन में एक असीमित उल्लास का भाव था कि
चलो अब इस स्वेटर की यात्रा पूरी हो गई। भगवान इसकी आत्मा को शांति दें। यही सोचकर उसकी आत्मा की
शांति के लिए 2 मिनट का मौन रखने के बाद हम अपने खेलने में मशगूल हो गए, शाम को जब पार्क से खेलकर
आते हैं तो क्या देखते हैं..! हमारी आंखें विस्मित हो खुली की खुली रह गई... माता जी ये कहकर स्वेटर को धोकर
अच्छे से संभाल कर रख रही थी कि आगे किसी के काम आएगा। हम सोचे बैठे थे कि इतनी ही आयु थी इस स्वेटर
की.... परंतु शायद यह अमरता लेकर आया था।
आह! क्या कर सकते हैं छोड़िए... (ठंडी आह भरते हुए)
हमारी शादी | My marriage
अब हमारी शादी का समय हो आया था। नए पुराने कपड़ों की संदूक में उधेड़बुन हो रही थी। कुछ जगह बनाई जा
रही थी, कुछ जगह को भरा जा रहा था। इसी बीच क्या देखते हैं?.. माताजी ने जीरो साइज का एक स्वेटर दिखा
कर कहा... यह तुम्हारे भैया जी का है, संभाल कर रखा है... जब इस घर में नवागंतुक आएगा तो उसे पहला
स्वेटर यही पहनाया जाएगा (मुस्कुराते हुए माता जी ने कहा)... हमारे यहां नव शिशु को छ: दिन तक नए कपड़े
नहीं पहनाए जाते, तब यह काम आएंगे (कहकर एक झोला दिखाते हुए हमारे आगे कर दिया).... और उस झोले में
उस कपड़े के साथ में 2-3 कपड़े और थे... हमनें तो माथा पकड़ लिया, कहीं गिर ही ना जाएं....!!!
अब आप समझ ही गए होंगे...???
तो इसीलिए मिडिल क्लास को मिडिल क्लास कहा जाता है।
नोट :-
यहां पर एक बात और स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि उपरोक्त वक्तव्य में मैंने मैं को हम कहां है। वह इसलिए
क्योंकि मिडिल क्लास में कुछ भी तेरा-मेरा.. या मैं नहीं होता। जो होता है, हमारा होता है। अगर 1 किलो आम में 4
ही आम आए हैं तो वह भी इस तरह से बांटे जाते हैं कि सभी को बराबर मिल जाए। यदि किसी को विशेष प्रिय हो
तो उसी में से एक और एक्स्ट्रा भी मिल जाता है परंतु किसी को कमी नहीं होती 🙂🙂🙂
Bhabhiji Ghar Par Hai- Hasya Kavya
Bhot hi sundar likha h padhkar bachpan ki yaade taza ho gyi bhot hi badhiya ese hi likhte rahe aap
जवाब देंहटाएंजी हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया.... आप के आशिर्वाद से मेरी लेखनी से ऐसी ही रचनाएं रचित हो... और मैं इन्हें आप तक पहुंचा सकूं.. मां शारदे से यही प्रार्थना है 🙏
हटाएंअपने मिडिल क्लास फैमिली के बारे में जो बात की बे-ए-शक़ इसी तरह ज़िंदगी जीते हैं हम मिडिल क्लास लोग।
जवाब देंहटाएंजी यही तो सुंदरता और खासियत है... हमारी मिडिया क्लास फैमिली की
हटाएंBahut achchi lga tumhra yha prays
जवाब देंहटाएंJi dhanyawad mere is prayas ko sarahne k liye 🙏..aap chahe to mere page ko follow kr sakte h. ..taki is prakar ki rachnayen Mai aap tk pahucha saku
हटाएंDidi sahi me apna bachpan yaad aagaya
जवाब देंहटाएंThank you Bhai ji... Wo zamana hi kuch aur tha🤗
हटाएंArun Kumar
जवाब देंहटाएंDidi sahi me apna bachpan yaad aagaya