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शनिवार, 12 जून 2021

कहानी खिचड़ी की! | National Dish Of India

     कहानी खिचड़ी की ! | National Dish Of India

       हैलो दोस्तों!... कैसे हैं आप सभी..  आशा करती हूं आप सभी अपने अपने घरों में खुश और स्वस्थ होंगे। आज 

मैं आपकी दोस्त पुष्प की दुनियां एक शनिचरी विषय लेकर आई हूं। हंसिए मत.. आप में से बहुत से लोग शनिचरी 

खिचड़ी को जानते होंगे।

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        मैं मूल रूप से बिहार से संबंध रखती हूं। हमारे यहां हर शनिवार को अनिवार्य रूप से खिचड़ी बनाई जाती है। 

अब तो यह खानपान का अभिन्न अंग बन चुकी है। खिचड़ी का नाम सुनते ही कुछ लोग लोगों के चेहरे पर मुस्कान 

आ जाती है तो कुछ नाक-मुंह सिकोड़ लेते हैं। बचपन में खिचड़ी का नाम सुनकर ही लगता था मानो बीमारों का 

खाना है‌।  जरी से तबीयत खराब हुई नहीं कि बस खिचड़ी का नाम सबसे पहले आ जाता था। घर में आने-जाने वाले हर रिश्तेदार की हिदायतों में एक नाम खिचड़ी का जरूर होता था। 'इसे हल्के 

खाने में खिचड़ खिलाइए...  जल्दी ठीक हो जाएगी।' और बस फिर शुरू हो जाता था इन महाशय खिचड़ी का घर 

में बनना।  

पर जब खिचड़ी का इतिहास पढ़ा तो इसकी महानता और प्राचीनता को जानकर बस नतमस्तक सी हो 

गई। तो आइए जानते हैं खिचड़ी की यात्रा के बारे में... क्यों है  खिचड़ी राष्ट्रीय  डिश?... कितने रूप हैं इसके?... 

क्या इसका इतिहास है?...   कैसे यह हमारी संस्कृति में रच बस गई है?... कैसे त्योहारों का भी रूप इसमें शामिल है?.


मुख्य बिन्दु/ Highlights:-

  1. क्यों है खिचड़ी राष्ट्रीय डिश? Why is Khichdi the national dish?
  2. कब मिली खिचड़ी को आधिकारिक रूप से मान्यता?When was Khichdi officially recognized?
  3. कैसे मनाया गया विश्व खाद्य दिवस? How was World Food Day celebrated? 
  4. किसका सुझाव था खिचड़ी को राष्ट्रीय पहचान देने का?Whose suggestion was to give national identity to Khichdi? 
  5. क्या है खिचड़ी का इतिहास? What is the history of Khichdi?
  6. संस्कृति में रची-बसी हमारी प्यारी खिचड़ी | Our lovely Khichdi is embedded in the culture
  7. खिचड़ी एक, रूप अनेक Many varieties of Khichdi
  8. मेरे बचपन का झरोखा | Khichdi in my childhood memories


क्यों है खिचड़ी राष्ट्रीय डिश? | Why is Khichdi the national dish?

               खिचड़ी को राष्ट्रीय पहचान दिए जाने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि इसे देश के अधिकतर 

लोग खाते हैं और इसे बनाना भी बहुत आसान है। मीडिया ने तो खिचड़ी को India's National Dish के 

नाम से फेमस किया है। जिसे सरकार ने India's Super Food और Queen Of All Foods के तौर पर दर्ज़ा दिया।


कब मिली खिचड़ी को आधिकारिक रूप से मान्यता? | When was Khichdi officially recognized?

               खिचड़ी को भारत की ओर से सुपर फूड के रूप में पहचान दिलाने की अधकारिक घोषणा 4 नवंबर 

2017 को की गई थी। खिचड़ी केवल भारत में ही नहीं बल्कि चीन को छोड़कर भारत की सीमा से सटे अन्य देशों में भी 

खूब प्रसिद्ध है।


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कैसे मनाया गया विश्व खाद्य दिवस? | How was World Food Day celebrated? 

  • 4 नवंबर 2017 को विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर दिल्ली में आयोजित खाद्य दिवस कार्यक्रम में  शेफ संजीव कपूर की एक टीम ने 800 किलोग्राम खिचड़ी बनाई थी।
  • खिचड़ी 60,000 अनाथालय के बच्चों में बांटी गई थी।
  • वैंकैया नायडू ने इस तीन दिवसीय कार्यक्रम उद्घाटन किया था।
  • यह कार्यक्रम 3 नवंबर से लेकर 5 नवंबर तक चला था।


किसका सुझाव था खिचड़ी को राष्ट्रीय पहचान देने का? | Whose suggestion was to give national identity to Khichdi? 

          खिचड़ी को पहचान दिलाने के बारे में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने सुझाव देते 

हुए कहा था कि यह एक हेल्थी, स्वादिष्ट, कम पैसों में और आसानी से बनने वाला व्यंजन है और इसीलिए इसे 

ग्लोबल फूड एक्सपो 2017 में भारत की ओर से सुपर फूड के तौर पर पेश किया गया था।


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क्या है खिचड़ी का इतिहास? | What is the history of Khichdi?

                    खिचड़ी वास्तव में एक संस्कृत के शब्द 'खिच्चा' से आया है। खिचड़ी एंग्लो डिश कुशारि से भी 

प्रेरित है। मोरक्कन यात्री इब्नबतूता (Ibn Battuta) ने 1356 में सिरका रहने के दौरान खिचड़ी का जिक्र किशारी के 

नाम से किया था, जिसे उन्होंने चावल और मूंग दाल से बनाने की बात कही थी।

कुछ विद्वानों का मानना है कि वेदों में जिस क्षिरिका का वर्णन मिलता है वह खिचड़ी का ही पुराना रूप या यूं कहें 

की पूर्वज है।

                   और तो और मुग़ल काल में खिचड़ी बहुत प्रसिद्ध थी सोलहवीं सदी में मुग़ल शहंशाह अकबर के वजीर

अबुल फजल इब्न मुबारक (Abu'l- Fazl- Ibn- Mubarak) द्वारा लिखे गए मुग़ल दस्तावेज़ Ain- I- Akbari में भी 

सात अलग-अलग तरीकों से खिचड़ी बनाने की विधि लिखी गई है।

                एक दिलचस्प वाक्या और है कि जब शहजादा सलीम गुजरात को फतह करके लौटे थे तो उनके पिता 

ने सलीम के स्वागत भोज में लज़ीज़ा नामक सामिष (मांसाहारी) खिचड़ी पकवाई थी। किंवदंती है कि सलीम ने 

गुजरात को जीता था और वहां का प्रिय भोजन खिचड़ी ही था इसीलिए इस भोज का मुख्य पकवान खिचड़ी का 

एक रूप रखा गया।


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            जब अंग्रेज भारत पहुंचे तो उनको भी खिचड़ी इतनी रास आई कि वे नाश्ते में जो केजरी शौक से खाते 

और खिलाते थे। खिचड़ी का ही एक और प्रयोगात्मक रूप था। उसमें बीती रात की बची हुई मछली, अंडे वगैरह 

डालकर पकाए जाते थे और करी पाउडर मसाले को add करने से इसके स्वाद में चार-चांद लग जाता था। 

हौब्सन-जॉब्सन की एंग्लो इंडियन डिक्शनरी में इसका वर्णन किया गया है।


संस्कृति में रची-बसी हमारी प्यारी खिचड़ी| Our lovely Khichdi is embedded in the culture

          माघ स्नान के दिन बचपन में माता जी यह कहकर डराती थी कि अगर आज के दिन स्नान नहीं किया और 

माघ की खिचड़ी नहीं खाई तो अगले जन्म में नीच कुल में जन्म मिलता है। इसी तरह से खिचड़ी हमारी सांस्कृतिक 

त्योहारों में भी रच बस गई है


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         दुर्गा पूजा के समय पंडालों में जो खिचड़ी  खिचुड़ी के नाम से प्रसाद रूप में मिलती है उसके तो कहने ही 

क्या?.. तमिलनाडु का पोंगल सात्विक खिचड़ी का एक दक्षिण क्षेत्रीय अवतार है जिसमें जीरे और काली मिर्च की 

दोस्ती से स्वाद का जादू जगाया जाता है। हाल ही में कुछ महान शेफौ के द्वारा 'मशरूम खिचड़ी', 'राजमा खिचड़ी' 

जैसे खिचड़ी के नए-नए  प्रयोगात्मक रूपों को सामने लेकर आए हैं । पर आज भी पारंपरिक खिचड़ी की ही

शाख बरकरार है। यह नए-नए रूप केवल इसका एक version बनकर रह गए हैं, विजेता केवल और केवल एक 

हमारी प्यारी खिचड़ी ही है।


खिचड़ी एक, रूप अनेक | Many varieties of Khichdi

          खिचड़ी मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और बंगाल में 

बड़े शौक से खाई जाती है। ऐसा नहीं है कि खिचड़ी इन्हीं राज्यों तक सीमित है। यह देश के हर राज्य में बनाई 

जाती है और प्रिय भोजन में शुमार है। सर्दियों में तो कई तरह की सब्जियों की उपलब्धता के कारण इसके जलवे 

ही अलग होते हैं। खिचड़ी साउथ एशिया की एक सबसे प्रसिद्ध डिश हैं, जिसे चावल और दाल को साथ मिलाकर 

पकाया जाता है। इसे कई जगहों पर बाजरा और मूंग दाल के साथ भी पकाया जाता है। खिचड़ी एक ऐसी डिश है 

जिसे हर बच्चे को आसानी से खिलाया जा सकता है। यही कारण है कि इसे First Solid Baby Food भी कहा 

जाता है।

     एक कमाल की बात है.. महाराष्ट्र की साबूदाना खिचड़ी में ना तो दाल होती है और ना ही चावल पर नाम 

खिचड़ी ही है। वैसे महाराष्ट्र में एक स्पेशल Prawn खिचड़ी बनाई जाती है जो वहां की स्पेशलिटी भी है। हैदराबाद, 

दिल्ली और भोपाल में खिचड़ा पकाया जाता है, जिसमें गेहूं तथा दाल के अलावा बोटी रहित मास पड़ता है। कुछ 

लोग इसे का शोला खिचड़ी बताते है जो किसी पुलाव से कम नहीं कहा जा सकता!

✍ मेरे बचपन का झरोखा | Khichdi in my childhood memories


       शनिवार की बात आते ही ज़हन में पुरानी यादें ताजा हो जाती है। शनिवार से जुड़ी कुछ खट्टी मीठी यादें आज 

भी स्मृति पटल पर अपनी छाया उकेरकर अपने होने का अधिकार जताती हैं कि मैं भी हूं.... मैं भी हूं...। 

बचपन में जिस ट्यूशन में मैं पढ़ती थी, वहां के गुरुजी हर शनिवार को शनिचर चढ़ाते थे। होता दरअसल यह था 

कि हर शनिवार को हमारे ट्यूशन में 20 तक पहाड़े सुने जाते थे, जिसने सुना दिए वह बच जाता था और जो नहीं 

सुना पाता था उसकी डंडों से पिटाई होती थी। हाथ पर गिन-गिन कर डंडे मारे जाते थे। उस समय पढ़ाई के लिए 

गुरुजी दो-चार चपेट लगाने का अधिकार रखते थे। मेरे लिए तसल्ली की बात यह थी कि मैं हर शनिवार बच जाती 

थी। कुछ बच्चे तो ऐसे थे जो उस दिन छुट्टी कर लिया करते थे। परंतु इतने में भी उनका बेड़ा पार न लगता था 

क्योंकि सोमवार को जब भी वे आते थे तो उनकी अच्छी खातिर की जाती थी और अभिभावकों से जो शिकायत होती 

थी वह अलग। 
       
          इसी के साथ बचपन से खिचड़ी को लेकर एक और याद उभर आती है। बचपन में मुझे खिचड़ी खाना 

बिल्कुल पसंद नहीं था एक बार माता जी के साथ हॉस्पिटल में थी तो वहां एक टाइम के खाने में खिचड़ी दी जाती थी। 

घर का खाना बहुत मिस करती थी। पर फिर धीरे-धीरे वो जीरे के तड़के वाली सादी-सी खिचड़ी अच्छी लगने 

लगी... लगती भी ना कैसे?... वहां की सूखी रोटी और बेस्वाद सब्जी के आगे वो थाली में लहराती,मटकती- सी 

खिचड़ी किसी छप्पन भोग से कम ना मालूम होती थी। तब से खिचड़ी मेरी फेवरेट हो गई। घर आकर माता जी से 

मैंने बनाने के लिए कहा तो उन्होंने एक नई ही वैरायटी बना दी, जो यू. पी. बिहार में बहुत फेमस है... जी हां! सही 

समझे आप... दाल पिट्ठी खिचड़ी जिसका स्वाद आज भी मेरे मन में ताजा है।


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मेरे पिताजी आज तो हमारे बीच नहीं है परंतु उनकी बातें सदा साथ रहेंगी वह एक लोकोक्ति हमेशा कहा करते थे- 

"खिचड़ी के चार यार, दही-पापड़-घी- अचार"... 

तो मैंने पिता जी से पूछा कि पिताजी क्या यह चारों चीजें जरूरी है खिचड़ी का अनन्य स्वाद लेने के लिए?... तो 

उन्होंने बताया- अरे नहीं बेटा! खिचड़ी को तो इनमें से बस किसी एक का भी साथ मिल जाए तो बस बात बन जाए। 

शायद इसीलिए खिचड़ी आज भी मेरी प्रिय है।

खिचड़ी बनाती तो मैं भी हूं पर बचपन में माता जी के हाथ का जो स्वाद है, वैसी कभी नहीं बना पाई! पता नहीं क्या 

स्वाद था....जो आज भी ज़बान पर है।

ओह! मेरी प्यारी खिचड़ी।


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आज के अंक की यह जानकारी आपको कैसी लगी..?
यदि आपकी भी कुछ यादें जुड़ी है इस प्यारी सी खिचड़ी से तो मुझे कमेंट करके बताएं!
फिर मिलूंगी अपने next ब्लॉग में तब तक के लिए नमस्कार 🙏

अगर आप भी अपना कोई विचार मुझसे सांझा करना करना चाहते है, तो आपका स्वागत है...☺️
         
        
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